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{{KKRachna
|रचनाकार=सुनील कुमार शर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
एकदम अलग होती हैं
नियम और व्यवस्थाएँ
भीतर की
और बाहर की
दरवाजे के अनुसार यह
सिर्फ दरवाजा ही जानता है
एक दिन नीम अन्धेरें निकल भागा
चौखट के कब्जे से दरवाजा,
कहता है बड़ा बोझ होता है
व्यवस्था बनाये रखने का।
कहते हैं दरवाज़ा
आँख बन गया था
नियमों और व्यवस्थाओं का
जिसे सोने की मनाही थी
वृहत्तर अर्थों में
तब से ही अंधे है दोनों
नियम और व्यवस्था!
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=
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एकदम अलग होती हैं
नियम और व्यवस्थाएँ
भीतर की
और बाहर की
दरवाजे के अनुसार यह
सिर्फ दरवाजा ही जानता है
एक दिन नीम अन्धेरें निकल भागा
चौखट के कब्जे से दरवाजा,
कहता है बड़ा बोझ होता है
व्यवस्था बनाये रखने का।
कहते हैं दरवाज़ा
आँख बन गया था
नियमों और व्यवस्थाओं का
जिसे सोने की मनाही थी
वृहत्तर अर्थों में
तब से ही अंधे है दोनों
नियम और व्यवस्था!
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