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<poem>
मौन को उत्सव बनाओ
दर्द को जीना सिखाओ
अब किसी भी
जंग से
डरती नहीं है ज़िन्दगी

आँधियों से जो लड़ा है
वही तो हिमगिरि बना है
धूप में जो भी तपा है
गुलमुहर-सा
वह खिला है
दर्द को दर्पन बनाओ
धैर्य को जीना सिखाओ
अब किसी भी
घुटन में
घुटती नहीं है जिन्दगी

ज़िन्दगी जो हल चलाती
वही तो मधुमास लाती
मरुथलों की
गली में भी
तृप्ति के है गीत गाती
प्यास को बादल बनाओ
प्यार को खिलना सिखाओ
अब किसी भी
हार से
डरती नहीं है ज़िन्दगी

स्वेद की जब नदी गाती
प्यार की फ़सलें उगाती
एक मुठ्ठी
धान से भी
झोपड़ी है गुनगुनाती
हाथ को हथियार कर लो
पाँव को रफ़्तार कर लो
अब किसी भी
ज़ुल्म से
झुकती नहीं है ज़िन्दगी
</poem>
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