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|रचनाकार=पेरुमाल मुरुगन
|अनुवादक=मोहन वर्मा
|संग्रह=एक कापुरुष के गीत / पेरुमाल मुरुगन / मोहन वर्मा
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<poem>
पेट और जीभ के अधीन हो
सहजन की फली तोड़ने
मैं पेड़ की शाख पर जा चढ़ा
वह कड़कड़ाई और
फूल और कोमल फलियों को साथ लिए
नीचे आ गिरी
उसका विलाप क्षणभर के लिए हुआ ।

ऊँचे ब्राण्ड के जूते पहन
जब मैं तेज़ी से चलता हूँ
चींटियाँ और अन्य कीड़े-मकोड़े
पाँव तले आकर कुचले जाते हैं
ज़रा भी आवाज़ नहीं होती ।

देर तलक लोरियाँ सुनाने के बाद
सोये हुए बालक को
आस-पास चलते लोगों की ऊँची आवाज़ें
हिचकोले मार उठा देती हैं
एक तीव्र चीख़ निकलती है ।

हर कोई अपना-अपना लक्ष्य लिए
अपनी राह चलता है
और कुछ भी तो नहीं किया जा सकता है ।

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मोहन वर्मा'''
</poem>
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