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{{KKRachna
|रचनाकार=सुरजीत पातर
|अनुवादक=योजना रावत
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
है मेरे सीने में कम्पन, मैं इम्तिहान में हूँ ।
मैं खिंचा तीर हूँ, मगर अभी कमान में हूँ ।
है तलवार इश्क़ की पर अपने ही सीने में,
कभी मैं ख़ौफ़, कभी रहम की म्यान में हूँ ।
बचाना आज किसी के सीने लगने से मुझे,
कि आज मैं पंछी नहीं, तीर हूँ, उड़ान में हूँ ।
ज़मीन रथ है मेरा, वृक्ष हैं परचम मेरे,
मेरा मुकुट है सूरज, मैं बहुत शान में हूँ ।
मिली अगन में अगन, जल में जल, हवा में हवा,
कि बिछड़े सब मिले, मैं अभी भी उड़ान में हूँ ।
तेरा ख़याल मेरे सीने से सटा हुआ है,
है रात हिज्र की, पर मैं अमन अमान में हूँ ।
मैं किसके साथ गुफ़्तगू करूँ कि कोई नहीं
मेरे बिना, मेरे रब ! मैं जिस जहान में हूँ ।
छुपा के रखता हूँ तुमसे मैं ताज़ा नज़्में
ताकि तू जानकर रोए, मैं किस जहान में हूँ ।
ये लफ़्ज़ मेरे नहीं, पर यह वाक्य मेरा है
या शायद यह भी नहीं, मैं यूँ ही गुमान में हूँ ।
</poem>
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|अनुवादक=योजना रावत
|संग्रह=
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<poem>
है मेरे सीने में कम्पन, मैं इम्तिहान में हूँ ।
मैं खिंचा तीर हूँ, मगर अभी कमान में हूँ ।
है तलवार इश्क़ की पर अपने ही सीने में,
कभी मैं ख़ौफ़, कभी रहम की म्यान में हूँ ।
बचाना आज किसी के सीने लगने से मुझे,
कि आज मैं पंछी नहीं, तीर हूँ, उड़ान में हूँ ।
ज़मीन रथ है मेरा, वृक्ष हैं परचम मेरे,
मेरा मुकुट है सूरज, मैं बहुत शान में हूँ ।
मिली अगन में अगन, जल में जल, हवा में हवा,
कि बिछड़े सब मिले, मैं अभी भी उड़ान में हूँ ।
तेरा ख़याल मेरे सीने से सटा हुआ है,
है रात हिज्र की, पर मैं अमन अमान में हूँ ।
मैं किसके साथ गुफ़्तगू करूँ कि कोई नहीं
मेरे बिना, मेरे रब ! मैं जिस जहान में हूँ ।
छुपा के रखता हूँ तुमसे मैं ताज़ा नज़्में
ताकि तू जानकर रोए, मैं किस जहान में हूँ ।
ये लफ़्ज़ मेरे नहीं, पर यह वाक्य मेरा है
या शायद यह भी नहीं, मैं यूँ ही गुमान में हूँ ।
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