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उपर ऊपर आसमान को देखना है,क्षितिज को छुना है .छूना है।
किसी को एक फूल देना है,आसपास कोई है कि नही या नहीं!यदि कोई है तो उसे बुलाना है ।है।
फिर कोई लहर व लस्कर बनाके या लश्कर बनाकर दूर तक पहुँचना है है।साम शाम का रक्तिम सूरजखो गया शायद कहीं ,सुब्ह सुबह का भोर भी दिखाई नहीं दिया, निचे जानेवाले नीचे जाने का रास्ता भी नहीं है।
कहाँ गए वे बस्तीयाँ बस्तियाँ?कहाँ गए वे रिस्तेदार रिश्तेदार?
इसी धूवेँ का धुएँ के जंगल मे सब को ढुँडना है ।में सबको ढूँढना है।००० ''यहाँ तल क्लिक गरेर यस कविताको मूल नेपाली पढ्न सकिनेछ-'' '''[[धूवाँको जङ्गल / ईश्वरवल्लभ]]'''
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