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Kavita Kosh से
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माँ, वह आएगा भी?
"हाँ, बेटा, वह आएगा।
वह सुबह का के सूरज की तरह रोशनी बिखेरते हुए आएगा।उसकी कमर पे पर शबनम-सा जगमगाता हुआ
तुम एक हथियार देखोगे,
उसी के सहारे लड़ेगा वह अधर्म से लड़ेगा!उसके आने पे पर
पहले तो तुम ख्वाब समझकर इधर-उधर टटोलोगे,
मगर वह बर्फ और आग से भी ज्यादा काबिल-ए-एहसास हो कर आएगाआएगा।"
सच माँ?
"हाँ, तुम्हारा तुम्हारे पैदा होते हुए तुम्हारा समयतुम्हारे मासूम चेहरे पर उसी की साया छाया देखने की तमन्ना थी मुझे।तुम्हारी मुस्कुराहट पे पर उसी का ख़ूबसूरत तस्वीरअक्स,तुम्हारे तोतले शब्दों पे में उसी की मद्दम आवाजमद्धम आवाज़,
मगर अब पता चला कि
उस मनमोहक गाने ने तुम्हेँ तुम्हें अपना बाँसुरी नहीं बनाया।
जवानी भर मेरा ख्वाब था कि वह तुम ही होगे।"
जो भी हो, वह आएगा;
माँ हूँ मैं, सारे सिर्जनशक्ति सृजनशक्ति की बोली बन के कह सकती हूँवह आएगा,ये यह मेरा कोई आलसी ख्बाब ख्वाब नहीं है।
सालों पहले उसका जीवनलोक से गिरकर चाँदनी-सा बिखरते वक्त
क्या वह सचमुच आएगा माँ?
उसके आने की उम्मीदजैसे मधुर उषा चिड़ियों के गले को गुदगुदाती हैवैसे ही मेरे दिल को गुदगुदा रही है! 'हाँ , वह आएगा, वह सुबह का के सूरज की तरह रोशनी बिखेरते हुए आएगा।अब मैं उठी, मैं चली।"'***"मगर जवानी भर मेरा ख्वाब था कि
वह तुम ही होगे।"
''यहाँ तल क्लिक गरेर यस कविताको मूल नेपालीपढ्न सकिनेछ-''
'''[[आमाको सपना / गोपालप्रसाद रिमाल]]'''
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