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सद्गुरूराया मज। अंगीकारावें महाराज।
धन्य धन्य हा सुदिन आज। देखिले चरण॥१५॥
हा देह आणि मन। गुरूचरणीं केलें अर्पण।
यांत किमपि जरी घडे प्रतरण। तरी चूर्ण होवो मस्तक॥१६॥
मात्र अपरोक्ष ज्ञान व्हावया। विचार पाहिजे शिष्यराया।
तोही अभ्यासें पावेल उदया।॥३१॥
निःसंशय आपणाची प्रस्तुत तुज परोक्षज्ञान।
उपदेशिजे घे ओळखून। तेंचि विश्र्वासें दृढ करून अभ्यास करी॥३२॥