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|रचनाकार=विश्राम राठोड़
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|संग्रह=
}}
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<poem>
यूँ नाराज भी होना
हर किसी को नसीब नहीं होता
नाराज में आवाज़ दिखे
हर किसी ख़ुशनसीब नहीं होता
ख़ुशनसीब है वह लोग जो नाराजगी में दिखतें है
चुप रहने वालो का तो
आज तक भी आगाज नहीं होता
यूँ नाराज भी होना
हर किसी को नसीब नहीं होता
नाराज में आवाज़ दिखे हर किसी ख़ुशनसीब नहीं होता
ख़ुशनसीब है वह लोग जो नाराज
चुप रहने वालो का तो
आज तक भी आगाज नहीं होता
</poem>
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यूँ नाराज भी होना
हर किसी को नसीब नहीं होता
नाराज में आवाज़ दिखे
हर किसी ख़ुशनसीब नहीं होता
ख़ुशनसीब है वह लोग जो नाराजगी में दिखतें है
चुप रहने वालो का तो
आज तक भी आगाज नहीं होता
यूँ नाराज भी होना
हर किसी को नसीब नहीं होता
नाराज में आवाज़ दिखे हर किसी ख़ुशनसीब नहीं होता
ख़ुशनसीब है वह लोग जो नाराज
चुप रहने वालो का तो
आज तक भी आगाज नहीं होता
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