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{{KKRachna
|रचनाकार=पैट्रिस लुमुम्बा
|अनुवादक=राम शरण शर्मा 'मुंशी'
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
सुना है तुमने
कभी
धरती का चीत्कार ?
सुना है तुमने
कभी
नारी का हाहाकार ?
देख़ा है तुमने
कभी
नई लाल कोंपल पर
कुलिश का प्रहार ?
देखा है तुमने
कभी
नन्हे शिशु पर
पैशाचिक अत्याचार ?
देखा है तुमने कभी
संगीनों से
क्षत-विक्षत प्यार ?
देखा है तुमने
कभी
रक्त - आग - आँसुओं
का ज्वार ?
नहीं - नहीं
यह किसी की चीख़ नहीं !
आत्मा से निकला
एक ज़हर - बुझा तीर है !
नहीं
यह लुमुम्बा की पत्नी नहीं
कुचली गई
मानवता की पीर है !
</poem>
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|रचनाकार=पैट्रिस लुमुम्बा
|अनुवादक=राम शरण शर्मा 'मुंशी'
|संग्रह=
}}
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<poem>
सुना है तुमने
कभी
धरती का चीत्कार ?
सुना है तुमने
कभी
नारी का हाहाकार ?
देख़ा है तुमने
कभी
नई लाल कोंपल पर
कुलिश का प्रहार ?
देखा है तुमने
कभी
नन्हे शिशु पर
पैशाचिक अत्याचार ?
देखा है तुमने कभी
संगीनों से
क्षत-विक्षत प्यार ?
देखा है तुमने
कभी
रक्त - आग - आँसुओं
का ज्वार ?
नहीं - नहीं
यह किसी की चीख़ नहीं !
आत्मा से निकला
एक ज़हर - बुझा तीर है !
नहीं
यह लुमुम्बा की पत्नी नहीं
कुचली गई
मानवता की पीर है !
</poem>