भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
ये टूटे खंडहर देखे तो दिल ने कहा मुझसे,
मसनूई<ref> झूठे</ref> ख़ुदाओं के अबरू का है ख़म टूटा ।
बाक़ी ही बचा क्या था लिखने के लिए उसको,
वो शाख़े बदन लचकी तो मेरा क़लम टूटा ।
बेचोगे 'अना' अपनी बेकार की शय<ref>चीज़</ref> लेकर,किस काम में आयेगा जमशेद<ref>एक बादशाह</ref> का जम<ref>उसका मशहूर प्याला</ref> टूटा ।
</poem>
{{KKMeaning}}