गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
दास्ताँ सुनो यारो लामकाँ मकीनों की / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
2 bytes added
,
24 जनवरी
लामकाँ मकीनों की, सूफियों की पीरों की
बात कर रहे हैं हम
आज होंगी बातें बस
इल्म के ज़ख़ीरों की
हर ख़ुशी क़दम चूमे कायनात की उसके
SATISH SHUKLA
490
edits