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{{KKRachna
|रचनाकार=दिनेश शर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
मैं घूमण गाम गया था रै
मेरे ना आया पहचाण
ना किते हेली ना किते नौरा
ना माट्टी का रह्या मकान
ना दामण अर कुड़ता आडै
ना कंठी का नामो नशान
ना जोहड़ अर ना किते कुँए
के नेजु डोल का काम
कित सैं भजनी कित वें जोगी
जो सदा गावैं थे राम
नींब अर पीपल ग़ायब होगे
ना घणी दूर तक छाम
छुपम छपाई ना हरे समंदर
ना बालक करैं धमाल
चूल्हे की रोटी सादा खाना
ना दिखैं सैं इब आम
ना बलदां का जोड़ा दिखदा
ना डांगर ढोर का लार
हल अर हाली दिखैं कम सैं
ट्रैक्टरां की होइ भरमार
सुख शांति का टोटा होग्या
रही बाक़ी भागम-भाग
दिनेश कित तै ढूँढ कै ल्यादूं
मिट्या भाईचारा तमाम।
मैं घूमण गाम गया
</poem>
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|रचनाकार=दिनेश शर्मा
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|संग्रह=
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<poem>
मैं घूमण गाम गया था रै
मेरे ना आया पहचाण
ना किते हेली ना किते नौरा
ना माट्टी का रह्या मकान
ना दामण अर कुड़ता आडै
ना कंठी का नामो नशान
ना जोहड़ अर ना किते कुँए
के नेजु डोल का काम
कित सैं भजनी कित वें जोगी
जो सदा गावैं थे राम
नींब अर पीपल ग़ायब होगे
ना घणी दूर तक छाम
छुपम छपाई ना हरे समंदर
ना बालक करैं धमाल
चूल्हे की रोटी सादा खाना
ना दिखैं सैं इब आम
ना बलदां का जोड़ा दिखदा
ना डांगर ढोर का लार
हल अर हाली दिखैं कम सैं
ट्रैक्टरां की होइ भरमार
सुख शांति का टोटा होग्या
रही बाक़ी भागम-भाग
दिनेश कित तै ढूँढ कै ल्यादूं
मिट्या भाईचारा तमाम।
मैं घूमण गाम गया
</poem>