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अभावों से ग्रसित ये बस्तियाँ हैं
कुँवारी निर्धनों की बेटियाँ हैं
अभावों से घिरी ये बस्तियाँ हैं
कुँवारी निर्धनों की बेटियाँ हैं
पता देती हैं सावन का सभी को
कलाई में हरी जो चूड़ियाँ हैं
सुनहरी खेत में जो बालियाँ हैं
बहुत सोंधी तवे पर रोटियाँ हैं
चली जाए न जाती है आकर ऋतु रुत सुहानी अभी उपवन में उड़ती तितलियाँ हैं
बढ़ाएगा मनोबल क्या किसी का वो जिसके हाथ में बैसाखियाँ हैं
'रक़ीब' आये न अच्छे दिन अभी तक
गिनाने के लिए उपलब्धियाँ हैं
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