भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
<poem>
क्यों ज़ुबाँ पर मेरी आ गयी हैं प्रिये
थीं छुपानी जो बातें, कही हैं प्रिये
तेरी आमद से गुलशन महकने लगा कलियाँ हर शाख़ की खिल उठी हैं प्रिये
मेरे जीवन में खुशियाँ तेरे संग ही
देखते-देखते आ गयी हैं प्रिये
आँसुओं की लगा दी अभी से झड़ी
दास्तानें कई अनकही अभी कुछ नयी हैं प्रिये
दौरे माज़ी की बातें भुला दे 'रक़ीब'
अब तलक दिल में जितनी बची हैं प्रिये
</poem>
490
edits