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Kavita Kosh से
हैं आप मेरे हमसफ़र
मैं कितना खुशनसीब ख़ुश-नसीब हूँ
मैं खुद से दूर हो गया
भले ही मैं ग़रीब हूँ
कफ़स में हूँ हयात की
मैं एक अन्दलीब हूँ
फ़क़त तेरा हबीब हूँ
ग़ज़ल ही सिन्फ़ है मेरी ग़ज़ल ही का तबीब हूँ
कभी-कभी ये लगता है
मैं अपना ही 'रक़ीब' हूँ
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