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<poem>
ज़हनो दिल में हर इक के उतर जाइए
बन के ख़ुशबू फ़जाँ ख़ुश्बू फ़ज़ा में बिखर जाइए ये तो सच है नहीं कुछ कमी आप में दिल ये कहता है और हुस्ने-फितरत से भी कुछ सँवर जाइए
गर्दिशे वक़्त ख़ुद ही पशेमान हो
राहे पुरखार पुरख़ार से यूं गुजर गुज़र जाइए
ठीक है, मुझ से मिलना, न चाहें अगर
मेरे दुश्मन के हरगिज़ न घर जाइए
जा रहे हैं तो, दे जाइए ज़हर ज़ह्र कुछ
आप इतना करम मुझ पे कर जाइए
खुद ही सीने से अपने लगा लेगा वहवो पिघल जायेगा हाले ग़म देखकर
उसके कूचे में बा-चश्मे-तर जाइए
आपको जो समझता हुक्म पर आपके ख़न्दा-ज़न है अपना 'रक़ीब'आप उसकी खातिर ख़ुदारा न अदाओं पे मर जाइए  
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