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सुब्ह नौ की है तू रौशनी भी सनम
चौदवीं रात की चाँदनी भी सनम
आशिक़ी भी है, आवारगी भी सनम
कासनी हो अगर, ओढ़नी भी सनम
फ़र्क कुछ भी नहीं, है अमल एक ही
नाम पूजा का है, बन्दगी भी सनम
सौ बरस तक जियो, क्या दुआ दें जहाँ
मौत से कम नहीं, ज़िन्दगी भी सनम
जान ''आज़ाद'' ने दी वतन के लिए
बाइसे फ़ख़्र है, ख़ुदकुशी भी सनम
पहले अफ़साने लिखता रहा है 'रक़ीब'
अब वो करने लगा, शाइरी भी सनम
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