भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संतोष श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=संतोष श्रीवास्तव
|अनुवादक=
|संग्रह=यादों के रजनीगंधा / संतोष श्रीवास्तव
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
शाकुंतलम के पन्नों से
मदनोत्सव झांक रहा है
क्या तुम आ गए बसंत ?

पर तुम्हारे आगमन की सूचना
न कोयल ने दी
न भ्रमरों की गुंजन ने
पुरवईया भी तो नहीं बही
बौर भी सुवासहीन
स्निग्ध ,मादक स्पर्शहीन

तुम्हारे अस्तित्व की
निरंतरता,प्रतिबोधन
न जाने किन सीमाओं पर
ठिठके हुए हैं
जैसे श्रंखला में गुंथे जा रहे
उम्र के बीते वर्ष
गुंथन में प्रस्फुटन कहाँ?
मदिर गन्ध,दूधिया चाँदनी को
तलाशता-सा मन
क्यों आकुल व्याकुल

क्यों छंद बदल रहे हैं
लय भटक रही है
यह मन की उद्विग्नता ही तो
आने का संकेत है तुम्हारा
फिर मैं तुम्हारे आने का प्रमाण
क्यों तलाश रही बाहर
जब दहक रहे पलाश वन
मदनोत्सव उतर रहा
आहिस्ता
मन की दहलीज़ से
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
17,194
edits