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|रचनाकार=कुंदन सिद्धार्थ
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
साथ-साथ रहने के दिन
धीरे-धीरे कम होते जा रहे
पत्नी से कहा
कौन-सी नयी बात है
जन्म के बाद हर किसी की उम्र
हर दिन, हर रात कम होती जा रही
कहते हुए पत्नी मुस्करायी
जन्म-मरण का सत्य
इतना मुखर होने के बावजूद
मृत्युबोध में गहरे तक समायी पीड़ा घेर लेती है
जीवन खो देना
इस धरती पर प्रेम करने की
असंख्य संभावनाएँ खो देना है
मृत्यु का भय
दरअसल
प्रेम खो देने का भय है
यह बात
पत्नी से नहीं कहता
उसके साथ मुस्कराता हूँ
</poem>
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साथ-साथ रहने के दिन
धीरे-धीरे कम होते जा रहे
पत्नी से कहा
कौन-सी नयी बात है
जन्म के बाद हर किसी की उम्र
हर दिन, हर रात कम होती जा रही
कहते हुए पत्नी मुस्करायी
जन्म-मरण का सत्य
इतना मुखर होने के बावजूद
मृत्युबोध में गहरे तक समायी पीड़ा घेर लेती है
जीवन खो देना
इस धरती पर प्रेम करने की
असंख्य संभावनाएँ खो देना है
मृत्यु का भय
दरअसल
प्रेम खो देने का भय है
यह बात
पत्नी से नहीं कहता
उसके साथ मुस्कराता हूँ
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