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तीन बन्दर / मदन कश्यप

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|अनुवादक=बस चाँद रोएगा / मदन कश्यप
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<poem>
वे तीनों बन्दर ही थे
लेकिन गाँधीजी के नहीं

पहला बोलता था
लेकिन अपनी भाषा नहीं

दूसरा सुनता था
लेकिन लोकतंत्र और जनता की नहीं

तीसरा देखता था
लेकिन संविधान और न्याय को नहीं

तीनों बन्दर ही थे !
</poem>
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