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{{KKRachna
|रचनाकार= नाज़िम हिक़मत
|अनुवादक=अनिल जनविजय
|संग्रह=
}}
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<poem>
ये मत सोचो
कि कला के होंठों का
स्वाद कड़वा है —
कड़वे खीरे की तरह ...
मेरी कविताओं में
मेरे आँसुओं का स्वाद नहीं है,
उनमें तो मेरा दर्द भरा है —
समुद्री नमक की तरह ।
१९२९
</poem>
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|अनुवादक=अनिल जनविजय
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ये मत सोचो
कि कला के होंठों का
स्वाद कड़वा है —
कड़वे खीरे की तरह ...
मेरी कविताओं में
मेरे आँसुओं का स्वाद नहीं है,
उनमें तो मेरा दर्द भरा है —
समुद्री नमक की तरह ।
१९२९
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