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|संग्रह=पंछी यादों के / मधु 'मधुमन'
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<poem>
बिना बात ही रूठ जाना किसी का
कहाँ तक सहे कोई नखरा किसी का

हैं चेहरे पर चेहरे लगाए हुए सब
हो मालूम कैसे इरादा किसी का

न तेरा हुआ गर तो क्या इसमें हैरत
हुआ है सगा कब ज़माना किसी का

ये कैसी अजब त्रासदी है जहाँ की
मुसीबत किसी की है मौक़ा किसी का

जब उसकी अदालत में पेशी पड़ेगी
नहीं काम आएगा रुतबा किसी का

यही इक दुआ है हमारी तो या रब
न उजड़े कभी आशियाना किसी का

बनेगा सहारा तुम्हारा भी कोई
अगर तुम बनोगे सहारा किसी का

कोई लाख कर ले जतन चाहे ‘मधुमन‘
नहीं ज़ोर क़िस्मत पर चलता किसी का
</poem>
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