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रात भर क्रंदन करती है एक लहर बहाकर ले जाती हैस्त्रीमुझेरात भरसाथ ही बहकर जाती चांदनी का मैलापनसमाया रहता है उदासीकुंठाएँपाने और खोने की पीड़ा वायलिन वादक की आँखों से टपकती संवेदनाहौले सेअपनी मेरी आँखों में समा लता हूँमेरे रोम-रोम सपने में होती हैवैशाखअजीब-सी सिहरनभूपेन हजारिका का गायन यह कौन सी धुन बन जाता हैजो मेरी आँखों से आँसू की बरसातगुलमोहर के पेड़ के नीचेकरवा देती हैसुर्ख़ लाल रंग का लिबास पहनकरमेरे भीतर घुमड़ती हुई घुटनबर्फ़ की तरह पिघलने लगती है मुझे याद है ऎसी ही चित्रलेखा किसी तान कोसुनते हुएकभी भीड़ के बीच चुपचापरोता रहा थाकभी ऎसी ही तान को सुनकररात भर गुमसुम साजागता रहा था मैं भूल जाता हूँ विषाद की खरोंचों कोदुनियादारी की तमाम विकृतियों कोएक लहर बहाकर ले जाती हैमुझेमेरे भीतर समाता जाता राह देखती है उल्लास
रात भर क्रंदन करती है एक स्त्री
रात भर
शहर का पथरीला सीना
शांत रहता है
बंद रहती हैं खिड़कियाँ
खाँसते नहीं हैं बुजुर्ग
झाँकती नहीं हैं चाचियाँ-दादियाँ
रात भर एक घने जंगल में
सिहरता रहता हूँ मैं
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