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<poem>
रणभूमि में
छोड़ आए हैं क्षतविक्षत लाशें
छोड़ आए हैं करुण क्रंदन
छोड आए हैं वीभत्स दृश्य

रणभूमि से
आए हैं ओढ़कर विजेता का नकाब
आए हैं लिए जीत की उमंग
आए हैं सम्भालते हुए हर्षोल्लास

रणभूमि से
वापस आए हैं जीतकर विशाल देश–प्रदेश
वापस आए हैं जीतकर अन्य सरकार को
वापस आए हैं जीतकर ऐश्वर्य

पर अभी तक जीत नहीं पाया है
अनेकों दिलों का साम्राज्य।
</poem>
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