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पुजारिन कैसी हूँ मैं नाथ / अज्ञेय
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,
28 जून
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<Poem>
जारिन
पुजारिन
कैसी हूँ मैं नाथ!
झुका जाता लज्जा से माथ!
छिपे आयी हूँ मन्दिर-द्वार छिपे ही भीतर किया प्रवेश।
Arti Singh
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