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|रचनाकार=रसूल हम्ज़ातवहमज़ातफ़
|अनुवादक=श्रीविलास सिंह
|संग्रह=
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<poem>
तुम जी चुके हो लम्बा जीवन, अब भी संतुष्टसन्तुष्ट
बचाने को तुम्हें जीवन के झंझावातों से
तुम नाम नहीं ले सकते एक भी मित्र का
जिसके लिए गर्माहट हो तुम्हारे एकाकी ह्रदय में।में । जब गुजर गुज़र चुके होंगे वर्ष और तुम हो गए होग़े होगे वृद्धलोग मुड़ेंगे और कहेंगे :
“यहाँ रहता था एक व्यक्ति, एक शताब्दी पुराना, बेचारा
जो कभी न जिया एक दिन के लिए भी।”भी ।”
(1957)