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{{KKRachna
|रचनाकार=चरण जीत चरण
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
दिल निकलता ही नहीं इस ग़म से
तुमने भी छोड़ दिया इक दम से
तेरी तस्वीर रखी है लेकिन
प्यास बुझती है कहाँ शबनम से?
फिर तो कर लेती मुहब्बत दुनिया
जख्म भर जाते अगर मरहम से
क्या हुआ फ़िर से बता आई थी ?
एक आवाज़ मुझे भी छम से
दोस्त बन जायँ चलो कहने लगी
दिल मगर माना नहीं कुछ कम से
कश लगाने से लहू जलता है
यार वह कह के गई थी हमसे
</poem>
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दिल निकलता ही नहीं इस ग़म से
तुमने भी छोड़ दिया इक दम से
तेरी तस्वीर रखी है लेकिन
प्यास बुझती है कहाँ शबनम से?
फिर तो कर लेती मुहब्बत दुनिया
जख्म भर जाते अगर मरहम से
क्या हुआ फ़िर से बता आई थी ?
एक आवाज़ मुझे भी छम से
दोस्त बन जायँ चलो कहने लगी
दिल मगर माना नहीं कुछ कम से
कश लगाने से लहू जलता है
यार वह कह के गई थी हमसे
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