भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुस्कुराने लग गया / चरण जीत चरण

1,150 bytes added, रविवार को 17:25 बजे
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चरण जीत चरण |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGh...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=चरण जीत चरण
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
फिर से कोई धीरे धीरे पास आने लग गया
मसअला ये है कि मैं भी मुस्कुराने लग गया

कुछ क़दम तक साथ देने वाले तेरा शुक्रिया
तूने ठुकराया तो होश अपना ठिकाने लग गया

छोड़कर जलती हुई या रब मेरे हिस्से की आग
तू कहाँ गैरों की चिंगारी बुझाने लग गया ?

सबके दरवाज़े से होकर लौट आया मेरा दुःख
शाम जब ढलने लगी मेरे ही शाने लग गया

जाम, कश, आवारगी, तनहाइयाँ सब था वहॉं
यार तू भी वक्ते-रुखसत क्या सुनाने लग गया ?
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
17,260
edits