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{{KKRachna
|रचनाकार=चरण जीत चरण
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
कि जैसे साइकिलों की घंटियाँ कारें नहीं सुनतीं
कुछ ऐसे मुफलिसों का दर्द सरकारें नहीं सुनतीं
किसी का झूठ भी चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज बनता है
किसी का सच तलक खंडहर की दीवारें नहीं सुनतीं
हमें इक बार फ़िर से बात करनी चाहिए थी दोस्त
मुहब्बत, दोस्ती और अम्न तलवारें नहीं सुनतीं
नहीं जाता किसी सूरत भी ये अफ़सोस अब दिल से
मेरा रोना तेरी पायल की झनकारें नहीं सुनतीं
</poem>
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कि जैसे साइकिलों की घंटियाँ कारें नहीं सुनतीं
कुछ ऐसे मुफलिसों का दर्द सरकारें नहीं सुनतीं
किसी का झूठ भी चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज बनता है
किसी का सच तलक खंडहर की दीवारें नहीं सुनतीं
हमें इक बार फ़िर से बात करनी चाहिए थी दोस्त
मुहब्बत, दोस्ती और अम्न तलवारें नहीं सुनतीं
नहीं जाता किसी सूरत भी ये अफ़सोस अब दिल से
मेरा रोना तेरी पायल की झनकारें नहीं सुनतीं
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