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<poem>
पत्थर बनकर मोम पिघलने वाले हैं
इंसाँ हैं पर रंग बदलने वाले हैं

झूठ ने ऐसा तीर चलाया महफ़िल में
सच्चाई के प्राण निकलने वाले हैं

उनके चेहरे देखो कैसे खिले हुए
जो कलियों को रोज़ मसलने वाले हैं

एक ही रात में सारे गड्ढे भर डाले
पता चला सरकार टहलने वाले हैं

आज नहीं बोलूँगा ऐसी बात कोई
जिस को सुनकर आप उछलने वाले हैं
</poem>
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