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Kavita Kosh से
और जड़ देते हो मेरे पैरों में ग़रीबी की नाल
फिर भी तुम मेरे पिता, मेरे ईश्वर हो
धान की अनबुझ प्यासें जब मांगती माँगती हैं पानी
करता हूँ दिन की रात
रात को देता हूँ चकमा दिन का
तुम फिर-फिर फेंट देते हो मेरी कड़ी मेहनतें
दलदल की लिजलिजी कीच में
नहीं देते हो महादान किसी एक बूंद बूँद का
फिर भी तुम मेरे पिता हो, मेरे ईश्वर हो
अगर मैं मानना छोड़ दूँ तुम्हें,
