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Kavita Kosh से
लोग आँखों से सुन भी लेते हैं
फूल जिस वक्त वक़्त खिलखिलाते हैं
जिनके दस -बीस नाम होते हैं
वे पचीसों पते बताते हैं
लोग सपनों में जाग जाते हैं
आप कागज काग़ज़ के फूल हैं शायद
मुस्कुराते ही मुस्कुराते हैं !