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नया पृष्ठ: '''लेखन वर्ष: २००४ '''<br/><br/> ज़िन्दगी तेरे साथ से क्या मिला जुज़ तन्हाई ...
'''लेखन वर्ष: २००४ '''<br/><br/>
ज़िन्दगी तेरे साथ से क्या मिला जुज़ तन्हाई के<br/>
हर गाम इक मंज़िल है लोग मिले रुसवाई के<br/><br/>
अब भरोसा ही उठ गया दुनिया के लोगों पर से<br/>
अहले-जहाँ कब क़ाबिल थे सनम तेरी भलाई के<br/><br/>
चाक़ जिगर यूँ फड़का कि तड़प के फट गया<br/>
ऐजाज़े-रफ़ूगरी कैसा तागे टुट गये सिलाई के<br/><br/>
वो फ़ज़िर के रंग वो शाम का हुस्न अब कहाँ<br/>
चंद कुछ निशान थे सो मिट गये तेरी ख़ुदाई के<br/><br/>
हिज्र के रंग में सराबोर हैं अब मेरी रातें<br/>
काँटों के बिस्तर पे बिताता हूँ अब दिन जुदाई के<br/><br/>
करवटें बदल-बदल के मेरी रातें गुज़रती हैं<br/>
नसीब नहीं अब मुझे हुस्न तेरी अँगड़ाई के<br/><br/>
'''''जुज़''': अतिरिक्त । '''ऐजाज़''': जादू । '''फ़ज़िर''': भोर । '''हिज्र''': विरह''
ज़िन्दगी तेरे साथ से क्या मिला जुज़ तन्हाई के<br/>
हर गाम इक मंज़िल है लोग मिले रुसवाई के<br/><br/>
अब भरोसा ही उठ गया दुनिया के लोगों पर से<br/>
अहले-जहाँ कब क़ाबिल थे सनम तेरी भलाई के<br/><br/>
चाक़ जिगर यूँ फड़का कि तड़प के फट गया<br/>
ऐजाज़े-रफ़ूगरी कैसा तागे टुट गये सिलाई के<br/><br/>
वो फ़ज़िर के रंग वो शाम का हुस्न अब कहाँ<br/>
चंद कुछ निशान थे सो मिट गये तेरी ख़ुदाई के<br/><br/>
हिज्र के रंग में सराबोर हैं अब मेरी रातें<br/>
काँटों के बिस्तर पे बिताता हूँ अब दिन जुदाई के<br/><br/>
करवटें बदल-बदल के मेरी रातें गुज़रती हैं<br/>
नसीब नहीं अब मुझे हुस्न तेरी अँगड़ाई के<br/><br/>
'''''जुज़''': अतिरिक्त । '''ऐजाज़''': जादू । '''फ़ज़िर''': भोर । '''हिज्र''': विरह''