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नया पृष्ठ: '''लेखन वर्ष: २००३'''<br/><br/> शाम हुई<br/> एक उदासी परछाईं की तरह<br/> जिस्म के प...
'''लेखन वर्ष: २००३'''<br/><br/>
शाम हुई<br/>
एक उदासी परछाईं की तरह<br/>
जिस्म के पीछे-पीछे चलने लगी<br/>
और एक बूँद<br/>
कोरे किनारों को तर कर गयी<br/><br/>
ज़हन जैसे लिहाफ़ है फटा हुआ<br/>
और किसी ने उस पर<br/>
ख़्यालों के पैबंद सीं दिये हैं<br/>
इसको न ओढूँ तो<br/>
सर्द रातें बेकस कर जायें<br/><br/>
रात तो किसी तरह कट ही गयी<br/>
ज्यों शगाफ़ ने करवट ली<br/>
सहर ने उफ़क़ के किनारे तेज़ कर दिये<br/>
फिर से गूँगे दिन ने<br/>
तन्हाई दोहरायी बुतों की भीड़ में<br/><br/>
ख़ैर किसी तरह<br/>
यह दिन भी बह गया…<br/><br/>
शाम हुई<br/>
एक उदासी परछाईं की तरह<br/>
जिस्म के पीछे-पीछे चलने लगी<br/>
और एक बूँद<br/>
कोरे किनारों को तर कर गयी<br/><br/>
ज़हन जैसे लिहाफ़ है फटा हुआ<br/>
और किसी ने उस पर<br/>
ख़्यालों के पैबंद सीं दिये हैं<br/>
इसको न ओढूँ तो<br/>
सर्द रातें बेकस कर जायें<br/><br/>
रात तो किसी तरह कट ही गयी<br/>
ज्यों शगाफ़ ने करवट ली<br/>
सहर ने उफ़क़ के किनारे तेज़ कर दिये<br/>
फिर से गूँगे दिन ने<br/>
तन्हाई दोहरायी बुतों की भीड़ में<br/><br/>
ख़ैर किसी तरह<br/>
यह दिन भी बह गया…<br/><br/>