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'''लेखन वर्ष: २००३
आज फिर मुझको खिड़की सेहमारी दोस्ती बहुत गहरी थीदिख रहा है चाँद आधा-आधाजिसको लोहा कहा गया था
जिस तरह से मैं जी रहा हूँमगर जब उतरे बर्ग़े-बहारदोस्ताना मोर्चा खा गया था वो भी कहीं जी रहा है आधा'''बर्ग़े-आधाबहार'''= बहार के पत्ते, '''मोर्चा'''= जंग, rust
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