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खोयी हुई चीज़ / प्रयाग शुक्ल

No change in size, 05:59, 1 जनवरी 2009
|संग्रह=यह एक दिन है / प्रयाग शुक्ल
}}
 <Poem>वह खोयी खोई हुई चीज़ नहीं मिलती 
दिनों तक कितनी ही चीज़ों में उसकी
 झलक आती है अँधेरे अंधेरे में हम उससे मिलती-जुलती 
चीज़ को उठाकर तौलने भी लगते हैं ।
 
घर में रास्ते में बरसों बाद भी कौंध जाती
 है वह खोयी खोई हुई चीज़ । और जब चीज़ों के 
खोने के बारे में बातें होती हैं,
 
वही याद आती है सबसे अधिक ।
</poem>
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