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हूक उठी दिल में कुछ ऐसी , दूर क्षितिज तक चलता जाऊं।।
 
उच्च शैल आनंद शिखर तक , अविचल होकर बढ़ता जाऊं।।
घनन घनन घन सघन गगन हो, दामिनी चमके दिग्दाहों से
 तरल तिमिर ना रोक सकेगा , मुझ को मेरी इन राहों से
स्वच्छंद सुमन हों खिले जहां , गीत प्यार के गाता जाऊं।।
गरल जलद की झड़ी लगी हो , गूंज रहे हों सुर-श्मशान
 
चिर-निद्रा का अट्टहास भी , गरज रहा हो प्रलय समान
बुद्धि-चेतना जागी क्षण में , छल-प्रपंच से बचता जाऊं ।।
 
रास्ते में देखा तोः
दूर नगर से इक कुटिया में , टूट रहा था जीवन-बंधन
 
जीर्ण-शीर्ण रोगी था पीड़ित; मिटती सी रेखा सा जीवन
 
नि:स्वार्थ भाव से सेवा-रत, आनंद-शिखर बन जाता है
जीवन के निर्जन उपवन में , स्वच्छंद सुमन खिल जाता है