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|रचनाकार=ज्ञान प्रकाश विवेक
|संग्रह=आंखों में आसमान / ज्ञान प्रकाश विवेक
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[[Category:ग़ज़ल]]
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
झगड़ा किया था जिसने कल रात ज़िन्दगी से
अब बोलता नहीं है वो आदमी किसी से
पाबंदियाँ लगा कर तुम बीन पर ये सोचो
क्या वश में कर सकोगे विषधर को बाँसुरी से
सागर के पाँव में जो हो जाती है समर्पित
ये भाव बन्दगी के सीखेंगे हम नदी से
रखते हैं चाँदनी के वो हाथ पर अंगारे
जबसे हुए हैं उनके सम्बन्ध तीरगी से
ये धूप की चटाई बैठा हुआ हूँ जिसपर
तुमको बिछानी हो तो ले जाइये ख़ुशी से.
</poem>
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झगड़ा किया था जिसने कल रात ज़िन्दगी से
अब बोलता नहीं है वो आदमी किसी से
पाबंदियाँ लगा कर तुम बीन पर ये सोचो
क्या वश में कर सकोगे विषधर को बाँसुरी से
सागर के पाँव में जो हो जाती है समर्पित
ये भाव बन्दगी के सीखेंगे हम नदी से
रखते हैं चाँदनी के वो हाथ पर अंगारे
जबसे हुए हैं उनके सम्बन्ध तीरगी से
ये धूप की चटाई बैठा हुआ हूँ जिसपर
तुमको बिछानी हो तो ले जाइये ख़ुशी से.
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