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|संग्रह=ढलान पर आदमी / तुलसी रमण
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आसमान में उड़ती
चील की झोली में
चील छेड़ देती है मल्हार
सावन के अंधों के लिए
चील बदल देती है राग
खाली पेट कहीं शुरू होता है तांडव
कहीं नंगे तन भरत – नाट्यम् भरत–नाट्यम्
और कहीं रणबांकुरे करने लगते अभ्यास
पहाड़ से समुद्र तक
बहुत कम दिखाई पड़ते हैं
डफलियां लिए वे कुछ हाथ
जिनका अपना – अपना अपना–अपना राग है
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