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{{KKRachna
|रचनाकार=मोहन साहिल
|संग्रह=एक दिन टूट जाएगा पहाड़ / मोहन साहिल
}}
<Poem>
पत्थर पर हथौड़े की
और हथौड़े पर पत्थर की
बराबर होती है चोट
जाने क्यों टूटता है हर बार
पत्थर ही नहीं देखा कभी
टूटते हुए हथौड़ा।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=मोहन साहिल
|संग्रह=एक दिन टूट जाएगा पहाड़ / मोहन साहिल
}}
<Poem>
पत्थर पर हथौड़े की
और हथौड़े पर पत्थर की
बराबर होती है चोट
जाने क्यों टूटता है हर बार
पत्थर ही नहीं देखा कभी
टूटते हुए हथौड़ा।
</poem>