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{{KKRachna
|रचनाकार=रेखा
|संग्रह=चिंदी-चिंदी सुख / रेखा
}}
<poem>
अचानक
उमड़-घुमड़ हो आई बहुत
कर ली सबने बंद
घर की सांकलें
माँ की चिरौरी से उकताई
डाँट से ढीठ बनी
शरारत कोई
ले आती है छत पर
सहसा
घेर लेती है आकर
ठंडी बौछार
ऐसा ही है तुम्हारा प्यार!
</poem>
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|रचनाकार=रेखा
|संग्रह=चिंदी-चिंदी सुख / रेखा
}}
<poem>
अचानक
उमड़-घुमड़ हो आई बहुत
कर ली सबने बंद
घर की सांकलें
माँ की चिरौरी से उकताई
डाँट से ढीठ बनी
शरारत कोई
ले आती है छत पर
सहसा
घेर लेती है आकर
ठंडी बौछार
ऐसा ही है तुम्हारा प्यार!
</poem>