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11:46, 8 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
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।रचनाकार=जानकीवल्लभ शास्त्री
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रुक गयी नाव जिस ठौर स्वयं, माझी, उसको मझधार न कह !
कायर जो बैठे आह भरे
तूफानों की परवाह करे
हाँ, तट तक जो पहुँचा न सका, चाहे तू उसको ज्वार न कह !
कोई तम को कह भ्रम, सपना
ढूँढे, आलोक-लोक अपना,
तव सिन्धु पार जाने वाले को, निष्ठुर, तू बेकार न कह !
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