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{{KKRachna
|रचनाकार=अजित कुमार
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कल मैंने कविता को लिखा नहीं
कल मैंने कविता को जिया
मैंने कविता को जिया,
अपनी कविता जी को
कुछ ख़ास पसंद पसन्द नहीं आया।आया ।
मुँह फुलाकर वे जा बैठीं
जिन्हें मैंने दो-छत्ती में धर दिया था
ताकि बच्चों की उछल-कूद के लिए
घर में तनिक जगह तो निकले।निकले ।
बीते अनुभव से जानता हूँ-—
छुट्टियाँ ख़त्म होंगी
बच्चे वापस चले जाएँगे
या
उसके बावजूद
क्या पता?आएँ कि न आएँ!</poem>