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पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाये<br>
आँधी चली, धूल भागी घाँघरा घाघरा उठाये<br>
बाँकी चितवन उठा नदी, ठिठकी, घूँघट सरके।<br><br>
क्षितिज अटारी गदरायी दामिनि दमकी<br>
‘क्षमा करो गाँठ खुल गयी अब भरम की’<br>
बाँध टूटा झर-झर मिलन अश्रु ढरकेढ़रके<br>
मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के।<br>
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