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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पंकज चतुर्वेदी}} <poem> जीवन के बयालीसवें वसंत में न...
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{{KKRachna
|रचनाकार=पंकज चतुर्वेदी}}
<poem>
जीवन के बयालीसवें वसंत में
निराला को लगा -
अकेलापन है
घेर रही है सन्ध्या
बयालीसवें जन्मदिन पर
पुछा एक स्त्री से
कैसा लगता है
महाकवि की बात क्या सही है?
कहा उसने
बढ़ी है निस्संगता
और जैसे सांझ ही क्या
रात्रि-वेला चल रही है
बीच के इस फ़ासले में
और चाहे कुछ हुआ है
कम हुई है रोशनी
शाम का झुटपुरा
अब और गहरा हो चला है
कवि, जबसे तुम गये हो
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=पंकज चतुर्वेदी}}
<poem>
जीवन के बयालीसवें वसंत में
निराला को लगा -
अकेलापन है
घेर रही है सन्ध्या
बयालीसवें जन्मदिन पर
पुछा एक स्त्री से
कैसा लगता है
महाकवि की बात क्या सही है?
कहा उसने
बढ़ी है निस्संगता
और जैसे सांझ ही क्या
रात्रि-वेला चल रही है
बीच के इस फ़ासले में
और चाहे कुछ हुआ है
कम हुई है रोशनी
शाम का झुटपुरा
अब और गहरा हो चला है
कवि, जबसे तुम गये हो
</poem>