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पहली भोर / ऋषभ देव शर्मा

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{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
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}}
<Poem>
बरस भर वह
उगलता रहा मेरे मुँह पर
दिन भर का तनाव
हर शाम!


आज
नए बरस की पहली भोर
मैंने दे मारा
पूरा भरा पीकदान
उसके माथे पर!!


कैसा लाल - लाल उजाला
फ़ैल गया सब ओर!!!
</poem>