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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा |संग्रह=तरकश / ऋषभ देव शर्मा }} <Poem> घर...
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{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=तरकश / ऋषभ देव शर्मा
}}
<Poem>
घर से बाहर नहीं निकलना, आज शहर में कर्फ्यू है
लक्ष्मण रेखा पार न करना, आज शहर में कर्फ्यू है
माना चीनी नहीं मिल रही, माना दूध नहीं घर में
फिर भी अच्छा नहीं मचलना, आज शहर में कर्फ्यू है
मस्जिद में अल्लाह न बोला, राम न मंदिर में डोला
खून किया धर्मों ने अपना, आज शहर में कर्फ्यू है
संप्रदाय की मदिरा पीकर, आदम आदमख़ोर हुआ
छाया पर विश्वास न करना, आज शहर में कर्फ्यू है
नोट-वोट का शासन बोले, अलगावों की ही भाषा
इस भाषा को हमें बदलना, आज शहर में कर्फ्यू है
गिरे घरानों का अनुशासन, नारों का जादू टूटे
जनगण सीखे स्वयं सँभलना, आज शहर में कर्फ्यू है</Poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=तरकश / ऋषभ देव शर्मा
}}
<Poem>
घर से बाहर नहीं निकलना, आज शहर में कर्फ्यू है
लक्ष्मण रेखा पार न करना, आज शहर में कर्फ्यू है
माना चीनी नहीं मिल रही, माना दूध नहीं घर में
फिर भी अच्छा नहीं मचलना, आज शहर में कर्फ्यू है
मस्जिद में अल्लाह न बोला, राम न मंदिर में डोला
खून किया धर्मों ने अपना, आज शहर में कर्फ्यू है
संप्रदाय की मदिरा पीकर, आदम आदमख़ोर हुआ
छाया पर विश्वास न करना, आज शहर में कर्फ्यू है
नोट-वोट का शासन बोले, अलगावों की ही भाषा
इस भाषा को हमें बदलना, आज शहर में कर्फ्यू है
गिरे घरानों का अनुशासन, नारों का जादू टूटे
जनगण सीखे स्वयं सँभलना, आज शहर में कर्फ्यू है</Poem>