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मैं कहाँ पर, रागिनी मेरी कहाँ पर!


है मुझे संसार बाँधे, काल बाँधे

है मुझे जंजीर औ' जंजाल बाँधे,

किंतु मेरी कल्‍पना के मुक्‍त पर-स्‍वर;

मैं कहाँ पर, रागिनी मेरी कहाँ पर!


धूलि के कण शीश पर मेरे चढ़े हैं,

अंक ही कुछ भाल के कुछ ऐसे गढ़े हैं

किंतु मेरी भवना से बद्ध अंबर;

मैं कहाँ पर, रागिनी मेरी कहाँ पर!


मैं कुसुम को प्‍यार कर सकता नहीं हूँ,

मैं काली पर हाथ धर सकता नहीं हूँ,

किंतु मेरी वासना तृण-तृण निछावर;

मैं कहाँ पर, रागिनी मेरी कहाँ पर!


मूक हूँ, जब साध है सागर उँडेलूँ,

मूर्तिजड़, जब मन लहर के साथ खेलूँ,

किंतु मेरी रागिनी निर्बंध निर्झर;

मैं कहाँ पर, रागिनी मेरी कहाँ पर!
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