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ग़ज़ल
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काम अब कोई है न आएगा बस इक दिल के सिवा
रास्ते बन्द हैं सब कूचए-का़तिल के सिवा

बाइसे-रश्क१ है तन्हारवी-ए-रहरावे-शौक२
हमसफर कोई नहीं दूरी-ए-मंज़िल के सिवा

हमने दुनिया की हर इक शय से उठाया दिल को
लेकिन इक शोख़ के हंगाम-ए-महफि़ल के सिवा

तेगे़ मुन्सिफ़ हो जहाँ, दारो-रसन३ हों शायद
बेगुनाह कौन है इस शहर में का़तिल के सिवा

जाने किस रंग से आयी है गुलिस्ताँ में बहार
कोई नग़मा ही नहीं शोरे-सलालिस के सिवा
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१.जिसे देखकर प्रतिस्पर्धा की भावना उत्पन्न हो २.प्रेम के मार्ग के यात्री का अकेलापन ३.सूली और फाँसी
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