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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अली सरदार जाफ़री }} <poem> '''रक़्स-ए-ख़िज़ाँ''' ख़िज़ा...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अली सरदार जाफ़री
}}
<poem>
'''रक़्स-ए-ख़िज़ाँ'''
ख़िज़ाँ रसीदा निगारे-बहार रक़्स में है
अज़ीब आलमे-बेएतिबार रक़्स में है
बरस रहे हैं दरख़्तों से रंग, सूरते-बर्ग
तिलिस्म-ख़ानः-ए-लैलो-नहार रक़्स में है
गुज़र रहा है ज़माना बहार है न ख़िज़ाँ
बस इक तबस्सुमे-बर्क़ो-शरार रक़्स में है
न जाने कौन है माशूक़ कौन है आशिक़
न जाने किसका दिले-बेक़रार रक़्स में है
जुनूँ ने पैरहने-बर्गो-बार उतार दिया
बरह्नगी है कि दीवानावार रक़्स में है
यह काइनात का हैरतकदा वुजूद का राज़
अज़ल के रोज़ से बे-इख़्तियार रक़्स में है
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=अली सरदार जाफ़री
}}
<poem>
'''रक़्स-ए-ख़िज़ाँ'''
ख़िज़ाँ रसीदा निगारे-बहार रक़्स में है
अज़ीब आलमे-बेएतिबार रक़्स में है
बरस रहे हैं दरख़्तों से रंग, सूरते-बर्ग
तिलिस्म-ख़ानः-ए-लैलो-नहार रक़्स में है
गुज़र रहा है ज़माना बहार है न ख़िज़ाँ
बस इक तबस्सुमे-बर्क़ो-शरार रक़्स में है
न जाने कौन है माशूक़ कौन है आशिक़
न जाने किसका दिले-बेक़रार रक़्स में है
जुनूँ ने पैरहने-बर्गो-बार उतार दिया
बरह्नगी है कि दीवानावार रक़्स में है
यह काइनात का हैरतकदा वुजूद का राज़
अज़ल के रोज़ से बे-इख़्तियार रक़्स में है
</poem>